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"तुम्हारे चरण / धर्मवीर भारती" के अवतरणों में अंतर

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ये शरद के चाँद-से उजले धुले-से पाँव,
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दो बड़े मासूम बादल, देवताओं से लगाते दाँव,
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ये शरद के चाँद-से उजले धुले-से पाँव,<br>
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रसमसाती धूप का ढलता पहर,
मेरी गोद में !<br>
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ये हवाएँ शाम की, झुक-झूमकर बरसा गईं
ये लहर पर नाचते ताजे कमल की छाँव,<br>
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रोशनी के फूल हरसिंगार-से,
मेरी गोद में !<br>
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प्यार घायल साँप-सा लेता लहर,
दो बड़े मासूम बादल, देवताओं से लगाते दाँव,<br>
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अर्चना की धूप-सी तुम गोद में लहरा गईं
मेरी गोद में !<br><br>
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ज्यों झरे केसर तितलियों के परों की मार से,
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सोनजूही की पँखुरियों से गुँथे, ये दो मदन के बान,
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मेरी गोद में !
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हो गये बेहोश दो नाजुक, मृदुल तूफ़ान,
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रसमसाती धूप का ढलता पहर,<br>
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ज्यों प्रणय की लोरियों की बाँह में,
ये हवाएँ शाम की, झुक-झूमकर बरसा गयीं<br>
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झिलमिलाकर औ’ जलाकर तन, शमाएँ दो,
रोशनी के फूल हरसिंगार-से,<br>
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अब शलभ की गोद में आराम से सोयी हुईं
प्यार घायल साँप-सा लेता लहर,<br>
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या फ़रिश्तों के परों की छाँह में
अर्चना की धूप-सी तुम गोद में लहरा गयीं<br>
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दुबकी हुई, सहमी हुई, हों पूर्णिमाएँ दो,
ज्यों झरे केसर तितलियों के परों की मार से,<br>
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देवताओं के नयन के अश्रु से धोई हुईं ।
सोनजूही की पँखुरियों से गुँथे, ये दो मदन के बान,<br>
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चुम्बनों की पाँखुरी के दो जवान गुलाब,
मेरी गोद में !<br>
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मेरी गोद में !
हो गये बेहोश दो नाजुक, मृदुल तूफ़ान,<br>
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सात रंगों की महावर से रचे महताब,
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ज्यों प्रणय की लोरियों की बाँह में,<br>
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ये बड़े सुकुमार, इनसे प्यार क्या ?
झिलमिलाकर औ’ जलाकर तन, शमाएँ दो,<br>
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ये महज आराधना के वास्ते,
अब शलभ की गोद में आराम से सोयी हुईं<br>
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जिस तरह भटकी सुबह को रास्ते
या फ़रिश्तों के परों की छाँह में<br>
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हरदम बताये हैं रुपहरे शुक्र के नभ-फूल ने,
दुबकी हुई, सहमी हुई, हों पूर्णिमाएँ दो,<br>
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ये चरण मुझको न दें अपनी दिशाएँ भूलने !
देवताओं के नयन के अश्रु से धोयी हुईं।<br>
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ये खँडहरों में सिसकते, स्वर्ग के दो गान, मेरी गोद में !
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मेरी गोद में !<br>
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ये बड़े सुकुमार, इनसे प्यार क्या ?<br>
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ये महज आराधना के वास्ते,<br>
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जिस तरह भटकी सुबह को रास्ते<br>
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रश्मि-पंखों पर अभी उतरे हुए वरदान, मेरी गोद में !
 
रश्मि-पंखों पर अभी उतरे हुए वरदान, मेरी गोद में !
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11:59, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

ये शरद के चाँद-से उजले धुले-से पाँव,
मेरी गोद में !
ये लहर पर नाचते ताज़े कमल की छाँव,
मेरी गोद में !
दो बड़े मासूम बादल, देवताओं से लगाते दाँव,
मेरी गोद में !

रसमसाती धूप का ढलता पहर,
ये हवाएँ शाम की, झुक-झूमकर बरसा गईं
रोशनी के फूल हरसिंगार-से,
प्यार घायल साँप-सा लेता लहर,
अर्चना की धूप-सी तुम गोद में लहरा गईं
ज्यों झरे केसर तितलियों के परों की मार से,
सोनजूही की पँखुरियों से गुँथे, ये दो मदन के बान,
मेरी गोद में !
हो गये बेहोश दो नाजुक, मृदुल तूफ़ान,
मेरी गोद में !

ज्यों प्रणय की लोरियों की बाँह में,
झिलमिलाकर औ’ जलाकर तन, शमाएँ दो,
अब शलभ की गोद में आराम से सोयी हुईं
या फ़रिश्तों के परों की छाँह में
दुबकी हुई, सहमी हुई, हों पूर्णिमाएँ दो,
देवताओं के नयन के अश्रु से धोई हुईं ।
चुम्बनों की पाँखुरी के दो जवान गुलाब,
मेरी गोद में !
सात रंगों की महावर से रचे महताब,
मेरी गोद में !

ये बड़े सुकुमार, इनसे प्यार क्या ?
ये महज आराधना के वास्ते,
जिस तरह भटकी सुबह को रास्ते
हरदम बताये हैं रुपहरे शुक्र के नभ-फूल ने,
ये चरण मुझको न दें अपनी दिशाएँ भूलने !
ये खँडहरों में सिसकते, स्वर्ग के दो गान, मेरी गोद में !
रश्मि-पंखों पर अभी उतरे हुए वरदान, मेरी गोद में !