भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लौटा रहा हूँ / विमल कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:27, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
सारी समस्या
तुम्हें चाहने से खड़ी हुई है
मैं अब अपनी चाह को लौटा रहा हूँ।
तुम तक पहुँचने के लिए
बनाई थी मैंने एक राह
अब मैं उस राह को लौटा रहा हूँ ।
मैं जानता हूँ
तुम्हें हो रही होगी
बहुत तकलीफ़
सुनकर वह कराह
अब मैं उस कराह को
अपने सीने में लौटा रहा हूँ ।
पर यह सच है
कि मैं जितना तुमसे दूर जा रहा हूँ
उतना ही क़रीब पा रहा हूँ ।