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"पुकारना ज़रूर / विमल कुमार" के अवतरणों में अंतर

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04:40, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

क्या हम दोनों मुक्त नहीं हो सकते
इस मृत्यु से
जो हमारा पीछा कर रही है
तुमने तो अपने घर में देखा है
मृत्यु को
तुम तो उसे अच्छी तरह जानती हो
फिर क्यों नहीं यह बात मानती हो

साथ मिलकर
लड़ा जा सकता है
किया जा सकता है सामना
इस मृत्यु का
प्रेम से ही
जीता जा सकता है उसे ?

रुक्मिनी !
अगर तुम अकेली ही लड़ना चाहती हो
तो लड़ो
नहीं कहूँगा तुम्हें
कि पकड़ लो मेरा हाथ
पर मैं रहूँगा
सदैव तुम्हारे साथ

किसी तरह की ज़रूरत पड़े
तो पुकारना ज़रूर !