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05:12, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
प्रेम करने से पहले
हमें देख लेना चाहिए
एक-दूसरे के घर का नक़्शा
देख लेनी चाहिए
एक-दूसरे की चौहद्दी
कौन किस दिशा में खड़ा है
किसके पास किस तरह के सपने हैं
देख लेना चाहिए
एक-दूसरे का आँगन
एक दूसरे की छत
एक दूसरे की सीढ़ियाँ
और खिड़कियाँ भी
अगर नहीं है कोई घर
तो यह देख लेना चाहिए
कितना आसमान है सर के ऊपर
कितनी है पेड़ की छाँह
प्रेम करने से पहले
जान लेनी चाहिए
जीवन की परिभाषाएँ
मृत्यु का सच
क्या है एक दूसरे की
घबराहटें, साहस एक-दूसरे का
कौन कितना समझता है
दुख
कौन देता है महत्त्व
कितना संघर्ष को
है कितना धैर्य
यह तो और भी
पता लगा लेना चाहिए
किसके भीतर छिपा है
कितना लालच
कितना घृणा
कौन कितना है क्रूर
और हिंस्र
अगर प्रेम करने से पहले
एक-दूसरे की डायरी
पढ़ लें हम सब
तो बहुत कुछ अन्दाज़ा लगाया जा सकता है
प्रेम करने से पहले
हमें एक-दूसरे के भीतर
झाँककर देख लेना चाहिए
जैसे हम देखते हैं
झाँककर कोई कुआँ
कितना पानी है उसके अन्दर
एक-दूसरे के कंधे पर जमी
धूल भी झाड़ लेनी चाहिए
ताकि पता चले
कितना मज़बूत है यह कंधा
प्रेम करने से पहले
इतना सोच
ज़रूर लेना चाहिए
कि बाद में पछताना न पड़े
और कोई न लगाए
एक-दूसरे पर तोहमत
ज्वार की तरह
जो आता है प्रेम
वह छिन्न-भिन्न कर देता है
चीज़ों को
प्रेम सृजन का नाम है
ध्वंस का नहीं
यह बात दोनों को
याद रखनी चाहिए अच्छी तरह
और इसलिए नहीं करना चाहिए क्रोध
अगर क्रोध आ ही गया
तो माफ़ी माँग लेनी चाहिए
ईमानदारी से
बिना कुछ सोचे समझे
किसी के प्रेम में पड़ जाना
बहुत दुखदायी है
आत्म-संहारक भी
लेकिन जब किसी का किसी पर
उमड़ता है प्रेम
तो बुद्धि काम नहीं आती
हार जाता है
मस्तिष्क
धरी की धरी रह जाती है
हर सोची समझी चीज़
पर एक जद्दोजहद भी
चलती रहती है
मनुष्य के भीतर
तर्क और भावना के बीच
किसी की भावना जीत जाती है
तो किसी का तर्क जीत जाता है
और इस तरह हार जाता है मनुष्य
पड़ जाता है किसी के प्रेम में फिर बुरी तरह ।