भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जैसे कोई जाल था / विमल कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:00, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
क्या कहीं नहीं था
वह प्रेम
सिर्फ एक
ख़याल था ?
पता नहीं कैसा था
उसका रंग
हरा था
नीला था
लाल था ?
भाव था वह केवल
या उसका भी
दिक्-काल था
मछुआरों ने फेंका
जीवन की नदी में
जैसे एक जाल था !