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11:47, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
हम शहद बाँटते हैं
मधुमक्खियों की तरह
हज़ारों मील लम्बी और कठिन है
हमारे जीवन की भी यात्राएँ
उन्हीं की तरह
रहते हैं हम अपने काम में मगन
उन्हीं की तरह धरती के
एक-एक पुल की गंध और रस का
है पता हमें
वाकिफ़ हैं हम
धरती की नस-नस से
आपके मन और देह को रिझाता हुआ
आपकी जिव्हा पे
हमारी ही मेहनत का
है ये मीठा स्वाद
ध्यान रहे हम
डंक भी मारते हैं
ज़हर बुझा डंक
कोई यूँ ही हमारे छत्ते पे
मारे अगर पत्थर
वैसे हम मधुमक्खियाँ भर नहीं