भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अम्बर बदन झपाबह गोरि / विद्यापति" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति }} अम्बर बदन झपाबह गोरि।<br> राज सुनइ छिअ चांद...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=विद्यापति | |रचनाकार=विद्यापति | ||
− | }} | + | }} {{KKCatKavita}} |
+ | {{KKAnthologyKrushn}} | ||
अम्बर बदन झपाबह गोरि।<br> | अम्बर बदन झपाबह गोरि।<br> | ||
राज सुनइ छिअ चांदक चोरि।।<br> | राज सुनइ छिअ चांदक चोरि।।<br> |
20:04, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
अम्बर बदन झपाबह गोरि।
राज सुनइ छिअ चांदक चोरि।।
घरे घरे पहरु गेल अछ जोहि।
अब ही दूखन लागत तोहि।।
कतय नुकायब चांदक चोरि।
जतहि नुकायब ततहि उजोरि।।
हास सुधारस न कर उजोर।
बनिक धनिक धन बोलब मोर।।
अधर समीप दसन कर जोति।
सिंदुर सीम बैसाउलि मोति।।
भनइ विद्यापति होहु निसंक।
चांदुह कां किछु लागु कलंक।।