भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम जागौ मेरे लाड़िले, गोकुल -सुखदाई / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सूरदास
 
|रचनाकार=सूरदास
}}  
+
}} {{KKCatKavita}}
 
+
{{KKAnthologyKrushn}}
 
राग बिलावल  
 
राग बिलावल  
  

20:13, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

राग बिलावल

तुम जागौ मेरे लाड़िले, गोकुल -सुखदाई ।
कहति जननि आनन्द सौं, उठौ कुँवर कन्हाई ॥
तुम कौं माखन-दूध-दधि, मिस्री हौं ल्याई ।
उठि कै भोजन कीजिऐ, पकवान-मिठाई ॥
सखा द्वार परभात सौं, सब टेर लगाई ।
वन कौं चलिए साँवरे, दयौ तरनि दिखाई ॥
सुनत बचन अति मोद सौं जागे जदुराई ।
भोजन करि बन कौं चले, सूरज बलि जाई ॥

माता आनन्दपूर्वक कह रही है--मेरे लाड़िले, गोकुल को सुख देने वाले लाल तुम जागो! कुँवर कन्हाई ! उठो, तुम्हारे लिये मैं मक्खन, दूध दही और मिश्री ले आयी हूँ । उठकर पकवान और मिटाइयों का भोजन करो । सबेरे से ही सब सखा द्वार पर खड़े पुकार रहे हैं कि `श्यामसुन्दर! देखो , सूर्य दिखायी देने लगा अब वन को चलो ।' (माता की) यह बात सुनकर श्रीयदुनाथ अत्यन्त आनन्द से जागे और भोजन करके वन को चल पड़े । सूरदास इन पर बलिहारी जाता है ।