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21:06, 18 अप्रैल 2011 का अवतरण

कई
कवि देखे
कई तरह के
कवि देखे

कोई मधुकर था यहाँ
कोई काला था, कोई दिलवाला
कोई परमानंद, कोई विश्वनाथ ।
देवेंद्र कुमार को यहीं देखा
अपनी हीर कविता के लिए राँझा बनते ।