"शिव स्तुति/ तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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00:44, 19 अप्रैल 2011 का अवतरण
शिव-स्तुति
को जाँचिये संभु तजि आन.
दीनदयालु भगत-आरति-हर, सब प्रकार समरथ भगवान..१..
कालकूट-जुर जरत सुरासुर, निज पन लागि किये बिष पान.
दारुन दनुज. जगत-दुखदायक, मारेउ त्रिपुर एक ही बान..२..
जो गति अगम महामुनि दुर्लभ, कहत संत, श्रुति, सकल पुरान.
सो गति मरन-काल अपने पुर, देत सदासिव सबहिं समान..३..
सेवत सुलभ, उदार कलपतरु, पारबती-पति परम सुजान.
देहु काम-रिपु राम-चरन-रति, तुलसिदास कहँ क्रिपानिधान..४..
(2)
बावरो रावरो नाह भवानी।
दानि बडो दिन दये बिनु, बेद-बड़ाई भानी।1।
निज घरकी बरबात बिलाकहु, हौ तुम परम सयानी।
सिवकी दई संपदा देखत, श्री-सारदा सिहानी।।
जिनके भाल लिखी लिपि मेरी, सुखकी नहीं निसानी।
तिन रंकनकौ नाक सँवारत, हौं आयो नकबानी।।
दुख-दीनता दुखी इनके दुख, जाचकता अकुलानी।
यह अधिकार सौंपिये औरहिं, भाीख भली मैं जानी।।
प्रेम-प्रसंसा-बिनय-ब्यंगजुत, सुति बिधिकी बर बानी।।
तुलसी मुदित महेस मनहिं मन, जगतु-मातु मुसकानी।।