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"पिता के लिए शोकगीत-2 / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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आदमी अकेला नहीं मरता | आदमी अकेला नहीं मरता |
00:56, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
आदमी अकेला नहीं मरता
मरता है घर का एक-एक जन
थोड़ी-थोड़ी सी मौत
मर जाती है झोलों में भरकर
बाज़ार से आनेवाली खुशी
आटे के बिना कनस्तर
और रोटी के बिना
चूल्हा मर जाता है
मर जाता है तेल के बिना
हर साँझ जलने वाला दिया
दिये के बिना मर जाती है
देहरी घर की
सुख सामान बांधे बिना चला जाता है
अचानक कहीं दूर
और घर भर में टहलता रहता है दुख
मगर दुख और मृत्यु के अंधियारे में
हमें जीवित मिलता है एक रास्ता
एक आदमी के पसीने और रक्त से बना हुआ
हमारे पाँवों को पुकारती है
उस रास्ते की धूल ।