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"पिता की इच्छाएँ / आशीष त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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पिता जीते हैं इच्छाओं में
 
पिता जीते हैं इच्छाओं में

01:10, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

पिता जीते हैं इच्छाओं में

पिता की इच्छाएँ
उन चिरैयों का झुंड
जो आता है आँगन में रोज़
पिता के बिखराए दाने चुगने

वे हो जाना चाहते हैं हमारे लिए
ठंडी में गर्म स्वेटर
और गर्मी में सर की अँगौछी

हमारी भूख में
बटुओं में पकते अन्न की तरह
गमकना चाहते हैं पिता
हमारी थकान में छुट्टी की घंटी की तरह बजना चाहते हैं वे

पिता घर को बना देना चाहते हैं
सुनार की भट्ठी
वे हमें खरा सोना देखना चाहते हैं

लगता है कभी-कभी
इच्छाएँ नहीं होंगी
तो क्या होगा पिता का

गंगा-जमुना की आख़िरी बूँद तक
पिता देना चाहते हैं चिरैयों को अन्न
पिता, बने रहना चाहते हैं पिता ।