भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अभ्रकी धूप / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय }}) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अनिल जनविजय | |रचनाकार=अनिल जनविजय | ||
}} | }} | ||
+ | |||
+ | |||
+ | यह धूप बताशे के रंग की | ||
+ | |||
+ | यह दमक आतशी दर्पण की | ||
+ | |||
+ | कई दिनों में आज खिल आई है | ||
+ | |||
+ | यह आभा दिनकर के तन की | ||
+ | |||
+ | |||
+ | फिर चमक उठा गगन सारा | ||
+ | |||
+ | फिर गमक उठा है वन सारा | ||
+ | |||
+ | फिर पक्षी-कलरव गूँज उठा | ||
+ | |||
+ | कुसुमित हो उठा जीवन सारा | ||
+ | |||
+ | |||
+ | यह धूप कपूरी, क्या कहना | ||
+ | |||
+ | यह रंग कसूरी, क्या कहना | ||
+ | |||
+ | अक्षत-सा छींट रही मन में | ||
+ | |||
+ | उल्लास-माधुरी क्या कहना | ||
+ | |||
+ | |||
+ | फिर संदली धूल उड़े हलकी | ||
+ | |||
+ | फिर जल में कंचन की झलकी | ||
+ | |||
+ | फिर अपनी बाँकी चितवन से | ||
+ | |||
+ | मुझे लुभाए यह लड़की |
00:42, 24 जून 2007 का अवतरण
यह धूप बताशे के रंग की
यह दमक आतशी दर्पण की
कई दिनों में आज खिल आई है
यह आभा दिनकर के तन की
फिर चमक उठा गगन सारा
फिर गमक उठा है वन सारा
फिर पक्षी-कलरव गूँज उठा
कुसुमित हो उठा जीवन सारा
यह धूप कपूरी, क्या कहना
यह रंग कसूरी, क्या कहना
अक्षत-सा छींट रही मन में
उल्लास-माधुरी क्या कहना
फिर संदली धूल उड़े हलकी
फिर जल में कंचन की झलकी
फिर अपनी बाँकी चितवन से
मुझे लुभाए यह लड़की