"माँ के लिए / निवेदिता" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार =निवेदिता }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं एक मीठी नींद लेना चाहत…) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार =निवेदिता | |रचनाकार =निवेदिता | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatKavita}} |
+ | {{KKAnthologyMaa}} | ||
<poem> | <poem> | ||
मैं एक मीठी नींद लेना चाहती हूँ | मैं एक मीठी नींद लेना चाहती हूँ |
01:40, 20 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
मैं एक मीठी नींद लेना चाहती हूँ
40 की उम्र में भी चाहती हूँ कि
मेरे सर पर हाथ रख कर कोई कहे
सब ठीक हो जाएगा
ठीक वैसे ही जैसे बचपन में माँ
हमें बहलाया करती थी
हमारी उम्मीदें जगाती थीं
मैं इस उम्र में माँ की गोद में
सुकून की नींद लेना चाहती हूँ
उसके सीने से लिपट जी भर रोना चाहती हूँ
जानती हूँ समय ठहरता नहीं
बचपन पीछे लौट चुका है
फिर भी बार-बार मेरे आइने में मुस्कुराता है
मैं फिर से नन्हीं बच्ची की तरह
बेवजह रोना खिलखिलाना चाहती हूँ
मैंने तो कई सदियां गुज़ारी है
हर सदी में स्त्री का दुख एक सा है
हर सदी की स्त्री का संघर्ष
घर की दीवारों में दफ़न है
हर सदी में वह अपने को मिटाती रही है
घर के लिए सुकून और ख़ुशी तलाशती रही है
वह आंधी और तूफ़ानों के बीच कुछ रौशनी बचा लाई है
उस दिन के लिए जब बच्चे आएँगे तो उजाले में वह उनसे मिलेगी
और उनकी आँखों में तलाशेगी अपने लिए आदर और प्यार
कि बच्चे एक दिन कहेंगे
यह वही उजाला है जिसे हमारी माँ ने
सूरज से चुराया था
बादलों से छिपाया था
हवा के थपेड़ों से बचाया था
वह रोशनी है यह जिससे रौशन है इन्सान