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"माँ / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

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  तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन
 
  तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन

01:42, 20 अप्रैल 2011 का अवतरण

 
 तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन
 कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
 कोई नहीं सृष्टि में तुमसा
 माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो

 ब्रह्मा तो केवल रचता है
 तुम तो पालन भी करती हो
 शिव हरते तो सब हर लेते
 तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो
 किसे सामने खड़ा करूं मैं
 और कहूं फिर तुम ऐंसी हो।।

 ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे
 सारे देव भक्ति के भूखे
 लगते हैं तेरी तुलना में
 ममता बिन सब रूखे रूखे
 पूजा करे सताये कोई
 सब की सदा तुम हितैषी हो।।

 कितनी गहरी है अद् भुत सी
 तेरी यह करुणा की गागर
 जाने क्यों छोटा लगता है
 तेरे आगे करुणा सागर
 जाकी रहि भावना जैसी
 मूरत देखी तिन्ह तैंसी हो।।

 मेरी लघु आकुलता से ही
 कितनी व्याकुल हो जाती हो
 मुझे तृप्त करने के सुख में
 तुम भूखी ही सो जाती हो
 सब जग बदला मैं भी बदला
 तुम तो वैसी की वैसी हो।।

 तुम से तन मन जीवन पाया
 तुमने ही चलना सिखलाया
 पर देखो मेरी कृतघ्नता
 काम तुम्हारे कभी नआया
 क्यों करती हो क्षमा हमेशा
 तुम भी तो जाने कैसी हो
 माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।।