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स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए
 
स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए

15:35, 9 जुलाई 2007 का अवतरण

स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए

समय-तार बजा कर जो जगे,

रँग गई धरती अनुराग से,

गगन में नवगुंजन छा गया.