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"लिखा समय ने / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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'''लिखा समय ने'''
 
 
लिखा समय ने सारा मधुवन  
 
लिखा समय ने सारा मधुवन  
 
लकड़कटों के नाम  
 
लकड़कटों के नाम  
कब आवोगे शंख बजाने  
+
कब आओगे शंख बजाने  
वो मेरे घनश्याम  
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मेरे घनश्याम !
बहरी रैन हुये, दिन गंूगे
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बहरी रैन हुए, दिन गूँगे
 
धूप समेटे पंख,  
 
धूप समेटे पंख,  
पानी पानी चीख रहे हैं  
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पानी पानी चीख़ रहे हैं  
 
पड़े रेत पर शंख  
 
पड़े रेत पर शंख  
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पान, फूल, पत्तों पर पसरी  
 
पान, फूल, पत्तों पर पसरी  
सन्नाटे की शाम  
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सन्नाटे की शाम
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काली झील बदलता मौसम
 
काली झील बदलता मौसम
 
आसमान बदरंग  
 
आसमान बदरंग  
हंसो के भी बदल गये हैं  
+
हंसों के भी बदल गए हैं  
रहन सहन के ढंग  
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रहन-सहन के ढंग  
 +
 
 
चितकबरी चीलों के डैने  
 
चितकबरी चीलों के डैने  
बांट रहे कोहराम  
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बाँट रहे कोहराम  
 +
 
 
बुलबुल मैना कोयल भूली  
 
बुलबुल मैना कोयल भूली  
 
अपनी  मीठी तान,  
 
अपनी  मीठी तान,  
हुआ हुआ के बोल बेसुरे  
+
हुआ-हुआ के बोल बेसुरे  
खाये जाते कान ,  
+
खाए जाते कान,  
मांग रहा सूरज धरती से  
+
 
 +
माँग रहा सूरज धरती से  
 
उजियारे के दाम  
 
उजियारे के दाम  
कब आवोगे शंख बजाने  
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कब आओगे शंख बजाने  
वो मेरे घनश्याम?
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मेरे घनश्याम !
 
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01:47, 24 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

लिखा समय ने सारा मधुवन
लकड़कटों के नाम
कब आओगे शंख बजाने
ओ मेरे घनश्याम !

बहरी रैन हुए, दिन गूँगे
धूप समेटे पंख,
पानी पानी चीख़ रहे हैं
पड़े रेत पर शंख

पान, फूल, पत्तों पर पसरी
सन्नाटे की शाम
 
काली झील बदलता मौसम
आसमान बदरंग
हंसों के भी बदल गए हैं
रहन-सहन के ढंग

चितकबरी चीलों के डैने
बाँट रहे कोहराम

बुलबुल मैना कोयल भूली
अपनी मीठी तान,
हुआ-हुआ के बोल बेसुरे
खाए जाते कान,

माँग रहा सूरज धरती से
उजियारे के दाम
कब आओगे शंख बजाने
ओ मेरे घनश्याम !