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"खंडित सपन / शैलेश मटियानी" के अवतरणों में अंतर

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19:36, 24 अप्रैल 2011 का अवतरण

खंडित हुआ
ख़ुद ही सपन,
तो नयन आधार क्या दें
नक्षत्र टूटा स्वयं,
तो फ़िर गगन आधार क्या दें

जब स्वयं माता तुम्हारी ही
डस गई ज्यों सर्प-सी
तब कौन
तपते भाल पर
चंदन–तिलक-सा प्यार दो !