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"संकल्प / शैलेश मटियानी" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेश मटियानी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> गीत को उगते हु…) |
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19:39, 24 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
गीत को
उगते हुए
सूरज-सरीखे छंद दो
शौर्य को फिर
शत्रु की
हुंकार का अनुबंध दो ।
प्राण रहते
तो न देंगे
भूमि तिल-भर देश की
फिर
भुजाओं को नए
संकल्प-रक्षाबंध दो !