"मूर्तियाँ दुख की / ओएनवी कुरुप" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओएनवी कुरुप |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> बंडुरशिला के मं…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:50, 25 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
बंडुरशिला के मंदिर में
वधुएँ
संतान-प्राप्ति के लिए
प्रार्थना करती हैं
यहाँ की देवी
बहुत सुंदर है
माथा चुड़ामणियॉं
और नवरत्नों से सजी है
उसके कानों में मोती जटित
बालियाँ हैं
व्रत लेकर
पवित्र होकर वधुएँ
देवी के आगे हाथ जोड़कर
एक नन्हें बच्चे के लिए
दिल से प्रार्थना करती हैं
घर की ये देवियाँ
अपनी दुख को
देवी के अलावा
और किसे बताएँगी !
हाथों में फूल लेकर
यह वधुएँ सिर झुकाए
खड़ी हैं मानो
ख़ुद को अर्पित कर रही हैं
बगल के पीपल के पेड़
की छाँव में बैठ
वे अपने दुख आपस में बाँटती हैं
पति-घर में
इन्हें बाँझ कह पुकारा
जाता है
और वे नौकरानी के रूप में
जीने को मज़बूर हैं
वे अपने पति को
अपनी छोटी बहन से
शादी करने के लिए
प्रेरित करती है
तब पति की संपत्ति
दूसरों की नहीं हो जाएगी
क्योंकि दूसरी औरत
से शादी करने पर
संपत्ति किसी और की
हो जाएगी
बगल के कमरे से
लोरी सुनाई देने पर
वे वहां झाँकती है
ऐसे में ननद कहती है ,
बाँझ पर नज़र रखना
वह बिना डर के
दूसरे संबंधों की
खोज में जा सकती है
यह सुनकर पति
"मैं तुझे सभी चीज़ों से ज़्यादा
प्यार करता हूँ" कह उसे
छाती से लगाता है
पर पति के निगूढ़ रिश्तों के
बारे में जानकर
उसका दिल दुखता है
वह एक जवान बेटा
चाहती है
आधी रात को
नशे में धुत्त होकर आया
एक आदमी बेशरम होकर
कहता है
"तू बांझ है"
वह हर दिन ऐसी बातें सुनकर ही
सोती है
वह कुछ कहती नहीं
सब कुछ सहती है
वह इतिहास के गलियों में कहीं
उतरकर आती चिरंजीवी
नारियों-सी है
आज भी नारी की स्तुति कर
हम उनको
धोखा दे रहे हैं
और वे एक नारी का ही
आश्रय ले रही हैं
श्री गौरी का !
दिल की पीड़ा
इनके अलावा
किससे कहें वे !
वधुएँ देवी के सामने
फूलों के साथ
दिल के दुखों को भी
अर्पित करती हैं
जो ढेर बन जाते हैं
क्या शिवपत्नी ने भी
लंबी साँस ली
जुबान से जो बात कही नहीं पाई
क्या वह आँखों में प्रकट हुई
मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स