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"गमक / महेश चंद्र पुनेठा" के अवतरणों में अंतर
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22:59, 26 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
फोड़-फाड़ कर बड़े-बड़े ढेले
टीप-टाप कर जुलके
बैठी है वह पाँव पसार
अपने उभरे पेट की तरह
चिकने लग रहे खेत पर
फेर रही है
हल्के-हल्के हाथ
ढाँप रही है ऊपर तल में
रह चुके बीजों को
फिर जाँचती है
धड़कन
अपने उभरे पेट में हाथ धर
गमक रही है औरत
गमक रहा है खेत
दोनों को देख
गमक रहा है एक कवि ।