भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदल गया है ज़माना / महेश चंद्र पुनेठा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश चंद्र पुनेठा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अब भी नहीं …)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:07, 26 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

अब भी नहीं कर सकती हो तुम
एक पुरुष से दोस्ती
ठीक-ठीक उसी तरह
जैसे कि किसी एक स्त्री से

तुम चाहती हो दोस्ती करना
किसी ऐसे पुरुष से
जिससे मिलते हों तुम्हारे विचार
भावों में हो जिसके निश्छलता
जिससे बातें करना
लगता हो तुम्हें अच्छा
जिसके साथ काम करने में
तुम्हें महसूस होती हो सहजता
तुम कर सकती हो और बेहतर प्रदर्शन

लेने लगेंगे लोग
अतिरिक्त रूचि
तुम्हारे साथ-साथ काम करने पर
साथ-साथ चलने पर
आपस में बातें करने पर ।


खोलने लगेंगे लोग
संबंधों के परतों के भीतर की परतें
लगी रहेंगी
छोटी -छोटी गतिविधियों पर भी नज़रें
करने लगेंगे कानाफूसी

लगने लगेगा लोगों को
कि हो रहा है कोई अनर्थ
जिसे रोका जाना
है उनका परम कर्तव्य ।

क्या ख़ाक बदला है ज़माना ?