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"रावण ओर मंदोदरी / तुलसीदास/ पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर

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रावण ओर मंदोदरी
'''( छंद संख्या 9 से 10 )'''
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'''( छंद संख्या 17 से 18 )'''
 
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(9)
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‘आयो! आयो! आयो सोई बानर बहोरि!’ भयो,
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सोरू चहुँ ओर लंका आएँ जुबराजकें।
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एक काढैं़ सौंज, एक धौंज करैं, ‘कहा ह्वैहै,
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पोच भाई’, महासोचु सुभअसमाज  कें।।
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गाज्यो कपिराजु रघुनाथकी सपथ करि ,
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मूँदे कान जातुधान मानो गाजें गाजकें।
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सहमि सुखात बातजातकी सुरति करि,
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लवा ज्यों लुकात, तुलसी झपेटें बाजकें।9।
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(10)
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तुलसी बल रघुबीरजू कें बालिसुतु
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वाहि न गनत, बात कहत करेरी -सी।
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‘बकसीस ईसजू की खीस होत देखिअत,
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रिस काहें लागति,  कहत हौं मै तेरी-सी।।
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चढ़ि गढ़-मढ़ दृढ़, कोटकें कँगूरें,
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कोपि, नेकु धका देहैं ढेलनकी ढेरी-सी।।
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सुनु दसमाथ! नाथ-साथके हमारे मपि
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हाथ लंका लाइहैं  तौ रहेगी  हथेरी-सी।10।
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18:14, 1 मई 2011 का अवतरण

रावण ओर मंदोदरी
( छंद संख्या 17 से 18 )