भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रावण ओर मंदोदरी / तुलसीदास/ पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
रावण ओर मंदोदरी | रावण ओर मंदोदरी | ||
'''( छंद संख्या 17 से 18 )''' | '''( छंद संख्या 17 से 18 )''' | ||
+ | (17) | ||
+ | कनकगिरिसृंग चढ़ि देखि मर्कटकटकु, | ||
+ | बदत मंदोदरी परम भीता। | ||
+ | सहसभुज-मत्तगजराज-रनकेसरी, | ||
+ | परसुधर गर्बु जेहि देखि बीता।। | ||
+ | |||
+ | दास तुलसी समरसूर कोसलधनी, | ||
+ | ख्याल हीं बालि बलसालि जीता। | ||
+ | |||
+ | रे कंत! त्ृान गहि ‘सरन श्रीरामु’ कहि, | ||
+ | अजहूँ एहि भाँतिल ै सौंपु सीता।17। | ||
+ | |||
+ | (18) | ||
+ | रे नीचु! मरीचु बिचलाइ, हति ताड़का, | ||
+ | भंजि सिवचापु सुखु सबहि दीन्हों । | ||
+ | |||
+ | सहज दसचारि खल सहित खर-दूषनहिं, | ||
+ | पैठै जमधाम, तैं तउ न चीन्ह्यों।। | ||
+ | |||
+ | मैं जो कहौं, कंत! स्ुनु मंतु भगवंतसो, | ||
+ | बिमुख ह्वै बालि फलु कौन लीन्ह्यो। | ||
+ | |||
+ | बीस भुज, दस सीस खीस गए तबहिं जब, | ||
+ | ईसके ईससों बैरू कीन्ह्यो।18। | ||
</poem> | </poem> |
20:45, 2 मई 2011 का अवतरण
रावण ओर मंदोदरी
( छंद संख्या 17 से 18 )
(17)
कनकगिरिसृंग चढ़ि देखि मर्कटकटकु,
बदत मंदोदरी परम भीता।
सहसभुज-मत्तगजराज-रनकेसरी,
परसुधर गर्बु जेहि देखि बीता।।
दास तुलसी समरसूर कोसलधनी,
ख्याल हीं बालि बलसालि जीता।
रे कंत! त्ृान गहि ‘सरन श्रीरामु’ कहि,
अजहूँ एहि भाँतिल ै सौंपु सीता।17।
(18)
रे नीचु! मरीचु बिचलाइ, हति ताड़का,
भंजि सिवचापु सुखु सबहि दीन्हों ।
सहज दसचारि खल सहित खर-दूषनहिं,
पैठै जमधाम, तैं तउ न चीन्ह्यों।।
मैं जो कहौं, कंत! स्ुनु मंतु भगवंतसो,
बिमुख ह्वै बालि फलु कौन लीन्ह्यो।
बीस भुज, दस सीस खीस गए तबहिं जब,
ईसके ईससों बैरू कीन्ह्यो।18।