भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सन्ध्याएँ / देवेन्द्र कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र कुमार }} {{KKCatNavgeet}} <poem> मटमैली गीली संध्याए…)
(कोई अंतर नहीं)

21:57, 2 मई 2011 का अवतरण

मटमैली गीली संध्याएँ ।

     सूरज बुझा बैंगनी, नीला
     बीत गया दिन पीला-पीला
हल्के हाथों के तकिए पर
सिर रखकर सो गई हवाएँ ।

     टूटे तारों का विज्ञापन
     खोया-खोया-सा अपनापन
दूर अँधेरे में घोड़े की
टाप बन गईं नई दिशाएँ ।

     इस टीले से उस टीले तक
     एक शब्द सिन्दूर मुबारक
सबसे भली नींद की गोली
जब चाहें खाकर सो जाएँ ।