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"कर्मवीर / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर

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देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं  
 
देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं  
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं  
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रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं  
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते नहीं  
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काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं  
 
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं  
 
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं  
 
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले  
 
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले  
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जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं  
 
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं  
 
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं  
 
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं  
आज कल करते हुये जो दिन गंवाते हैं नहीं  
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आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं  
 
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं  
 
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं  
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिये
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बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिये ।   
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वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए ।   
  
व्योम को छूते हुये दुर्गम पहाड़ों के शिखर  
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व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर  
वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर  
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वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर  
गर्जते जल-राशि की उठती हुयी ऊँची लहर  
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गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर  
 
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट  
 
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट  
ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं  
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ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं  
 
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।   
 
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।   
 
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22:29, 3 मई 2011 का अवतरण

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले ।

आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं ।

जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए ।

व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर
गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।