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वृक्षों की लम्बी छायाएँ कुछ सिमट थमीं । धूप तनिक धौली हो, पिछवाड़े बिरम गई । घासों में उरझ-उरझ, किरणें सब श्याम हुईं । साखू-शहतूतों की डालों पर, लौटे प्रवासी जब, नीड़ों में किलक उठी, दिशि-दिशि में गूँज रमी । पच्छिम </poem>