"किसी जगह / महेश वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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पुरानी जगहों पर ठिठका, रूका रहता है | पुरानी जगहों पर ठिठका, रूका रहता है |
11:55, 6 मई 2011 के समय का अवतरण
किसी भी वक़्त तुम वहाँ से गुज़रो--
तुम्हें मिलेगा धूप का एक कतरा
जो छूट गया था एक पुराने दिन की कच्ची सुबह से
और वहाँ गूँजता होगा एक चुंबन
बीतते जाते हैं बरस और
पुरानी जगहों पर ठिठका, रूका रहता है
समय का एक टुकड़ा
एक लंबे गलियारे के अंतिम छोर पर
हमेशा रखी मिलेगी एक धुँधली साँझ
और उसमें डूबता होगा एक चेहरा जो उसी समय
और उजला हो रहा था-- तुम्हारी आत्मा के जल में
उतरती सीढ़ियों पर तुम्हें विदाई का दृश्य मिलेगा
जो ले जाता था अपने साथ
प्रतीक्षाओं का पारम्परिक अर्थ
कहीं और रखी होगी एक और सुबह
अनापेक्षित मिलन के औचक प्रकाश से चुँधियाई
और शायद इसी से शब्दहीन
किसी मौसम के सीने में शोक की तरह रखा होगा
कोई और कालखंड
और कितनी खाली जगह हमारा आंतरिक
जहाँ रखते हम ये ऋतुएँ,
ये बरस,
ये सुबह और
साँझ के पुराने दृश्य ।