भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुर्सी / महेश वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> सर्दी, पानी, धूप-घा…)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:33, 6 मई 2011 के समय का अवतरण

सर्दी, पानी, धूप-घाम के बीच
बाहर पेड़ के नीचे
किसी तरह से छूट गई है कुर्सी
उजड़ चुका पुराना रंग,
जंग लगे कीलों से जुड़े जोड़ों में,
धीमे-धीमे जमा हो गई हैं चरमराहटें
एक दिन शेष हो जाएँगे
इस पर बैठने वाले का संस्मरण सुनाते अंतिम लोग
नये और अपरिचित लोगों के बीच
जब खुल जाएँगी इसकी संधियाँ ।
बताना मुश्किल होगा इसकी अस्थियों से
इसका विगत विन्यास,

इससे पहले ही किसी शिशिर में शायद
एकमत हो जाएँ कुछ लोग
दहकाने को इससे
एक साँझ का अलाव ।