भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 18" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
'''(लंकादहन-1 )'''
 
'''(लंकादहन-1 )'''
  
देखि ज्वालजालु, हाहाकारू दसकंघ सुनि,
+
बसन बटोरि बोरि-बोरि तेल तमीचर,  
  
कह्यो धरो धरो, धाए बीर बलवान हैं।  
+
खोरि-खोरि धाइ आइ बाँधत लँगूर हैं।
  
लिएँ सूल-सेल, पास-परिध, प्रचंड दंड,
+
  तैसो कपि कौतुकी डेरात ढीले गात कै-कै,  
+
भोजन सनीर, धीर धरें धनु -बान हैं।
+
+
‘तुलसी ’ समिध सौंज, लंक जग्यकुंडु लखि,
+
+
जातुधान पुंगीफल जव तिल धान है।
+
  
स्त्रुवा सो लँगूल , बलमूल प्रतिकूल हबि,  
+
लातके अधात सहै, जीमें कहै, कूर हैं।।
  
स्वाहा महा हाँकि हाँकि हुनैं हनुमान हैं।7।
+
बाल किलकारी कै-कै, तारी दै-दै गारी देत,
  
 +
पाछें लागे, बाजत निसान ढोल तूर हैं।।
  
गाज्यो कपि गाज ज्यों , बिराज्यो ज्वालजालजुत,  
+
बालधी बढ़न लागी, ठौर -ठौर दीन्हीं आगी,  
  
भाजे बीर धीर, अकुलाइ उठ्यो रावनो।
+
बिंधकी दवारि कैधौं कोटिसत सूर हैं।3।
  
धावौं , धावौ, धरौ, सुनि धाए जातुधान धारि,
 
  
बारिधारा उलदै जलदु जौन सावनो।।
+
लाइ-लाइ आगि भागे बालजाल जहाँ तहाँ,
  
लपट झपट झहराने, हहराने बात,
+
लघु ह्वै निबुकि गिरि मेरूतें बिसाल भो।
  
भहराने भट, पर्यो प्रबल परावनो।।
+
कौतुकी कपीसु कुदि कनक-कँगूराँ चढ्यो,
 +
 +
रावन-भवन चढ़ि ठाढ़ेा तेहि काल भो।।
  
ढकनि ढकेलि, पेलि सचिव चले लै ठेलि,  
+
‘तुलसी’ विराज्यो ब्योम बालधी पसारि भारी,  
  
नाथ! न चलैगो बलु, अनलु भयावनो।8।
+
देखें हहरात भट, कालु सो कराल भो।।
  
 +
तेजको निदानु  मानेा  कोटिक कृसानु-भानु,
  
बडो़ बिकराल बेषु देखि, सुनि सिंघनादु,  
+
नख बिकराल, मुखु तेसो रिस लाल भो।4।
  
उठ्यो मेघनादु, सबिषाद कहै रावनो।
 
  
  बेग जित्यो मारूत, प्रताप मारतंड कोटि,
+
बालसी बिसाल बिकराल, ज्वालजाल मानो ।
 +
 
 +
लंक लीलिबेको काल रसना पसारी हैं।
 +
 
 +
कैधों ब्योमबीधिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
 +
 
 +
  बीररस बीर तरवारि सो उधारी है।
 +
 
 +
‘तुलसी’ सुरेस-चापु, कैधों दामिनि-कलापु,
 
   
 
   
कालऊ करालताँ, बड़ाई जित्यो बावनो।।
+
कैंधों चली मेरू तें कृसानु-सरि भारी है।
  
‘तुलसी’ सयाने जातुधान पछिताने कहैं,
+
देखें जातुधान-जातुधानीं अकुलानी कहैं,
  
  जाको ऐसो दूतु, सो तो साहेबु अबै आवनो।।
+
  काननु उजार्यो, अब नगरू प्रजारिहैं।5।
  
काहेको कुसल रोषें राम बामदेवहू की,
 
  
बिषम बलीसों  बादि बैरको बढ़ावनो।9।
+
जहाँ-तहाँ बुबुक बिलोकि बुबुकारी देत,
  
 +
जरत निकेत, धावौ, धावौ लागी आगि रे।।
  
पानी!पानी! पानी! स्ब रानी अकुलानी कहैं,
+
  कहाँ तातु-मातु, भ्रात-भगिनी, भामिनी-भाभी,  
   
+
जाति हैं परानी, गति जानी गजचालि है।
+
  
बसन बिसारै, मनिभूषन सँभारत न,
+
ढोटा छोटे छोहरा अभागे भोंडे भागि रे।।
   
+
 
आनन सुखाने , कहै , क्योंहू कोऊ पालिहै।।
+
  हाथी छोरौ, घोरा छोरौ, महिष बृषभ छोरौ,
  
‘तुलसी’ मँदोवै मीजि हाथ, धुनि माथ कहै,  
+
छेरि छोरौ, सोवै सो जगावौ , जागि, जागि रे।।
  
काहूँ कान कियो न, मैं  कह्यो केतो कालि  है।
 
  
बापुरें बिभीषन पुकारि बार बार कह्यो,  
+
‘तुलसी’ बिलोकि अकुलानी जातुधानीं कहैं,  
  
बानरू बड़ी बलाइ घने घर घालिहै।10।
+
बार-बार कह्यौं , प्रिय! क्पिसों न लागि रे।6।
  
 
</poem>
 
</poem>

16:48, 6 मई 2011 के समय का अवतरण

 
(लंकादहन-1 )

बसन बटोरि बोरि-बोरि तेल तमीचर,

खोरि-खोरि धाइ आइ बाँधत लँगूर हैं।

 तैसो कपि कौतुकी डेरात ढीले गात कै-कै,

लातके अधात सहै, जीमें कहै, कूर हैं।।

 बाल किलकारी कै-कै, तारी दै-दै गारी देत,

 पाछें लागे, बाजत निसान ढोल तूर हैं।।

 बालधी बढ़न लागी, ठौर -ठौर दीन्हीं आगी,

बिंधकी दवारि कैधौं कोटिसत सूर हैं।3।


लाइ-लाइ आगि भागे बालजाल जहाँ तहाँ,

लघु ह्वै निबुकि गिरि मेरूतें बिसाल भो।

कौतुकी कपीसु कुदि कनक-कँगूराँ चढ्यो,
 
रावन-भवन चढ़ि ठाढ़ेा तेहि काल भो।।

‘तुलसी’ विराज्यो ब्योम बालधी पसारि भारी,

देखें हहरात भट, कालु सो कराल भो।।

तेजको निदानु मानेा कोटिक कृसानु-भानु,

 नख बिकराल, मुखु तेसो रिस लाल भो।4।


बालसी बिसाल बिकराल, ज्वालजाल मानो ।

लंक लीलिबेको काल रसना पसारी हैं।

कैधों ब्योमबीधिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,

 बीररस बीर तरवारि सो उधारी है।

‘तुलसी’ सुरेस-चापु, कैधों दामिनि-कलापु,
 
कैंधों चली मेरू तें कृसानु-सरि भारी है।

देखें जातुधान-जातुधानीं अकुलानी कहैं,

 काननु उजार्यो, अब नगरू प्रजारिहैं।5।


जहाँ-तहाँ बुबुक बिलोकि बुबुकारी देत,

 जरत निकेत, धावौ, धावौ लागी आगि रे।।

 कहाँ तातु-मातु, भ्रात-भगिनी, भामिनी-भाभी,

ढोटा छोटे छोहरा अभागे भोंडे भागि रे।।

 हाथी छोरौ, घोरा छोरौ, महिष बृषभ छोरौ,

 छेरि छोरौ, सोवै सो जगावौ , जागि, जागि रे।।


‘तुलसी’ बिलोकि अकुलानी जातुधानीं कहैं,

बार-बार कह्यौं , प्रिय! क्पिसों न लागि रे।6।