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"पेड़ बनी स्त्री / रेखा चमोली" के अवतरणों में अंतर

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20:47, 6 मई 2011 के समय का अवतरण

एक पेड़ उगा लिया है मैंने
अपने भीतर
तुम्हारे प्रेम का
उसकी शाख़ाओं को फैला लिया है
रक्तवाहिनियों की तरह
जो मज़बूती से थामे रहती हैं मुझे

इस हरे-भरे पेड़ को लिए
डोलती फिरती हूँ
संसार भर में
इसकी तरलता नमी हरापन
बचाए रखता है मुझमें
आदमी भर होने का अहसास

एक पेड़ की तरह मैं
बन जाती हूँ
छाँव, तृप्ति, दृढ़ता, बसेरा ।