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"छाया मत छूना / गिरिजाकुमार माथुर" के अवतरणों में अंतर

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हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्‍णा है।
 
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्‍णा है।
  
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
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उसका तू कर पूजन-
  
 
छाया मत छूना
 
छाया मत छूना

17:54, 12 मई 2011 का अवतरण

छाया मत छूना मन

होता है दुख दूना मन

जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी

छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;

तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,

कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।

भूली-सी एक छुअन

बनता हर जीवित क्षण

छाया मत छूना मन

होगा दुख दूना मन


यश है न वैभव है, मान है न सरमाया;

जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।

प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्‍णा है,

हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्‍णा है।

जो है यथार्थ कठिन

उसका तू कर पूजन-

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं

देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।

दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,

क्‍या हुया जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?

जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्‍य वरण,

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।