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"जानकी -मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 19" के अवतरणों में अंतर

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देत अरघ रघुबीरहि मंडप लै चलीं।
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करहिं सुमंगल गान  उमगि आनँद अलीं।137।
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बर बिराज मंडप महँ बिस्व बिमोहइ।
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ऋतु बसंत बन मध्य मदनु जनु सोहइ।।
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कुल बिबहार बेद बिधि चाहिय जहँ जस।
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उपरोहित दोउ करहिं मुदित मन तहँ तस।।
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बरहि पूजि नृप दीन्ह सुभग सिंहासन।
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चलीं दुलहिनिहि ल्याइ पाइ अनुसासन।।
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जुबति जुत्थ महँ  सीय सुभाइ बिराजइ।
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उपमा कहत लजाइ भारती भाजइ।।
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दुलह दुलहिनिन्ह देखि नारि नर हरषहिं ।
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छिनु छिनु गान निसान  सुमन सुर बरषहिं।।
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लै लै नाउँ सुआसिनि मंगल गावहिं।
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कुँवर कुँवरि हित गनपति गौरि पुजावहिं।।
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  अगिनि थापि मिथिलेस कुसोदक लीन्हेउ।
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कन्या दान बिधान संकलप कीन्हेउ।144।
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संकल्पि सि रामहि समरपी सील सुख सोभामई।
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जिमि संकरहि गिरिराज गिरिजा हरिहि श्री सागर दई।।
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सिंदूर बंदन होम लावा होन लागीं भाँवरी।
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सिल पोहनी करि मोहनी मनहर्यो मूरति साँवरी।18।
  
 
'''(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 19)'''
 
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12:07, 15 मई 2011 के समय का अवतरण

।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 19)

राम -विवाह -2

 ( छंद 137 से 144 तक)

देत अरघ रघुबीरहि मंडप लै चलीं।
करहिं सुमंगल गान उमगि आनँद अलीं।137।

बर बिराज मंडप महँ बिस्व बिमोहइ।
 ऋतु बसंत बन मध्य मदनु जनु सोहइ।।

कुल बिबहार बेद बिधि चाहिय जहँ जस।
 उपरोहित दोउ करहिं मुदित मन तहँ तस।।

बरहि पूजि नृप दीन्ह सुभग सिंहासन।
चलीं दुलहिनिहि ल्याइ पाइ अनुसासन।।

जुबति जुत्थ महँ सीय सुभाइ बिराजइ।
उपमा कहत लजाइ भारती भाजइ।।

दुलह दुलहिनिन्ह देखि नारि नर हरषहिं ।
 छिनु छिनु गान निसान सुमन सुर बरषहिं।।

 लै लै नाउँ सुआसिनि मंगल गावहिं।
कुँवर कुँवरि हित गनपति गौरि पुजावहिं।।

  अगिनि थापि मिथिलेस कुसोदक लीन्हेउ।

 कन्या दान बिधान संकलप कीन्हेउ।144।

(छंद-18)

संकल्पि सि रामहि समरपी सील सुख सोभामई।
 जिमि संकरहि गिरिराज गिरिजा हरिहि श्री सागर दई।।

सिंदूर बंदन होम लावा होन लागीं भाँवरी।
सिल पोहनी करि मोहनी मनहर्यो मूरति साँवरी।18।

(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 19)

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