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बिगुल बजाते फूल
एक गमले में
जैसे हो प्रहरी
मेरे द्वार के !
चार बिगुल बजाते फूल
उभरते पत्र्चक्रों से
बड़े , श्वेत
लटक रहे हैं नीचे !
"सुप्रभात "
जैसे बहता है पानी धीरे धीरे
मेरे फब्बारे से !
बिगुल बजाते फूल भर जाते हैं नई स्फूर्ति से
यही ऊर्जा समां जाती है मुझ में
वे लगाते हैं मेला शहनाइयों का
हाँ यह शुरुआत है एक नए दिन की  !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना