भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पहला सफ़ेद बाल / सूरज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरज |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> आज अचानक दिखा पहला सफ़े…)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:03, 16 मई 2011 के समय का अवतरण

आज अचानक दिखा
पहला सफ़ेद बाल
जैसे दिखी थी तुम
जीवन के अन्धेरे दिनों में

कुन्देरा नही पंकज आए
याद तुम्हारी मेरी आत्मा में
छूटी हुई, धरी हुई हँसी
पंकज से न मिल पाना
आया याद कितना कुछ

सुगन्धियों से शेष इस जीवन में
मैं ख़ुद को दिखा उन तमन्नाओं की
चौखट फेरते, जो रह गई थीं,
इच्छाएँ
छूटी हुई, साँस की तरह बजती हुई

कामनाओं की अकूत दौलत लिए देखता हूँ
आईने में खुद को सालों पार
सारे ही सफ़ेद बाल
जीवन जितने कम
यादों जितने बिखरे
बाल जिन्हे तुमने अपनी उँगलियों मे लिया था
जब मैं पहली बार रोया था तुम्हारे सामने
तुम्हारे बाद
मेरा जीवन मेरी परछाईयों ने जिया
सुख गायब हुए अज़ीज़ काले रंग की तरह

पहला सफ़ेद बाल देख चुका हूँ
आज ही अनगिन बार
मौज़ूद थे सारे कारण होने के उदास
पर सफ़ेद बाल ने ज़िम्मेदारी का सुन्दर
बोझ डाल दिया
पहला यह सफ़ेद बाल ही लाया ख़याल
तुम जहाँ भी रहो सुखी रहो
दुनिया सुन्दर हो जाए
कम हो जाए मेरा गुस्सा
(तुम्हारा भी)

मैं आज धीरे-धीरे हँसा
धीरे-धीरे ही लिए निवाले
चुस्कियों में बिताई चाय
तुम्हे कई बार सोचा
घर तीन दफ़ा फोन किया
(तुम्हे चार दफ़ा पर नम्बर...)

इस धवल केश ने अकेले ही दम जलाए
आत्मा के उन कमरे के कम रौशन दिये
जहाँ अधूरी ख़्वाहिशें लेटी
थीं उदास (.....वो भी बाईं करवट)
उनके लिये रोया ज़रूर
ज़रा भी नही झल्लाया पर
तुम्हे नही मना सका
उन्हे मनाया पर

अब अधूरी हसरतें ही साथिन
अब अधूरा ही
होऊँगा मैं
पूरा ।