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"नाम तुम्हारा / सूरज" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरज |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> बुज़ुर्गों की एक ही मुश…)
 
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14:27, 16 मई 2011 के समय का अवतरण

बुज़ुर्गों की एक ही मुश्किल रही
तुमसे अपरिचय उनका ले गया उन्हे
दूसरे कमतर नामों वाले देवताओं के पास
सीने को दहला देने वाली खाँसी
ख़ुद को झकझोरती छींक
के बाद लेते हैं वो उन ईश्वरों के नाम
मैं लेता हूँ नाम तुम्हारा

मैं तलाशता हूँ, ईश्वर को नहीं, ऐसे शुभाशुभ मौके
जब ले सकूँ मैं नाम तुम्हारा, पुकारूँ तुम्हे

“जैसे तुम्हारे नाम की नन्हीं-सी स्पेलिंग हो
छोटी-सी, प्यारी-सी तिरछी स्पेलिंग”
हाँ, देखो कि तुम्हारे नाम से शमशेर मुझे जानते थे,
पहिचानते थे,
ये तुम हो और शमशेर थे जिनने मेरी बीती हुई
अनहोनी और होनी की उदास रंगीनियाँ भाँप ली थी,
शमशेर थे जो मुझे इसी शरीर से अमर कर देना चाहा-
वो भी तुम्हारी बरकत।

तुम्हारे नाम के रास्ते वे मेरे दुख तक आ पहुँचे
ख़ुद रोए और मुझे दिलासा दिया
तुम कौन से इतिहास की पक्षी हुई ठहरी कि
तुम्हारे नाम से शमशेर मुझे जानते थे,
उनकी बेचैन करवटें
मेरे लिए थीं, आज भी ‘प्वाईजन’ की लेबल लगी
हँसती दवाओं और मेरे बीच शमशेर हैं,
तुम्हारे नाम से गुज़र वो मुझ तक
इस हद तक आ पहुँचे ।

तुम मेरे जीवन से कहीं दूर जाना चाहती हो,
इसे जान शमशेर मेरे लिए रोए होंगे,
ये उनकी ही नहीं समूचे ज़माने की मुश्किल है,
ये संसार मुझे तुमसे अलग देखना नही चाहता और तुम यह नही

शमशेर ने मेरा तुम्हारा जला हुआ क़िस्सा फ़ैज़ को सुनाया होगा
(तुम्हारा नाम [और तुम] है ही इतना अच्छा)
फ़ैज़ तुम तक आएँगे और जब कहेंगे कि अब जो उस लड़के के
जीवन में आई हो तो ठहरो के: कोई रंग, कोई रुत, कोई शै
एक जगह पर ठहरे।

मेरे हबीब, फ़ैज़ की बात ऊँची रखना।