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"तल्ख़ी-ए-हयात / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} <poem> यूँ रौशनी से बदगुम…)
 
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20:48, 17 मई 2011 के समय का अवतरण

यूँ रौशनी से बदगुमान न हो,
तू अंधेरों से छला जाएगा,
ये साया दो-पहर का साथी है,
रात होते ही चला जाएगा!

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आगोशे-शब में जो सुकून मय्यसर था हमें,
उजालों को सुबह के, वो भी गवारा न हुआ!

(आगोशे-शब - रात की गोद में; सुकून - आराम; मयस्सर - हासिल)

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(तल्ख़ी-ए-हयात - जिंदगी की कटुता / कड़वाहट)