भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"या ख़ुदा / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} <poem> मैं आदतन जो उसको या…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:40, 17 मई 2011 के समय का अवतरण
मैं आदतन जो उसको याद करूँ,
वो आदतन ही भुलाये मुझको!
«»«»«»«»«»«»
होश में क्यूँ न तू नज़र आए?
जाम ही क्यूँ तेरी ख़बर लाए?
«»«»«»«»«»«»
कई चौराहों पे देखा है ये अक्सर मैंने,
ख़ुदा के हाथ में भी कासा-ए-दर्यूज़ागरी!
(कासा-ए-दर्यूज़ागरी - भीख मांगने का कटोरा - अक्सर लोग सड़क पर भगवान की तस्वीर या मूर्ती रख देते हैं और लोग वहाँ पैसा चढ़ा देते हैं, उसी से मक्सद है)
«»«»«»«»«»«»
न हो नाज़ाँ अपने हुस्न पे इतना, कि कभी,
तुझे भी आना पड़ेगा इसी मिट्टी के तले,
रवाँ रहेगा सदा वक़्त, और ये कारे-जहाँ,
मैं रहूँ या न रहूँ! और तू रहे न रहे!
(नाज़ाँ - मग़रूर; रवाँ - चलते रहना; कारे-जहाँ - ज़िन्दगी के काम-काज)
«»«»«»«»«»«»