भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भूकम्पों के बीच / ज्ञानेन्द्रपति" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानेन्द्रपति |संग्रह= }} <Poem> आता है एक भूकम्प ऐस…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:32, 19 मई 2011 के समय का अवतरण
आता है एक भूकम्प ऐसा, कभी-कभी
तरंगशाली, उच्च क्षमतावान
बढ़ा देता है जो धरती के अपनी धुरी पर
घूमने की गति
कि छोटा हो जाता है दिन, क्षणांश को
कभी आता है एक भूकम्प ऐसा भी, जैसा कि अभी
इंसानी ज़मीन पर
कि दशाब्दियों से जमी-पथराई हुई
तानाशाही की परतें दरकने लगती हैं
और अचानक छोटी हो आती है
बेअन्त लगने वाली तानाशाहियों की उम्र
एक के बाद एक
इन भूकम्पों में
ढहते हैं रहवास
लहूलुहान इंसानी ज़िंदगियाँ गुज़रती हैं बेवक़्त
अपने ही ख़ून का नमक चख़ते हैं हम
कभी सिर झुकाए
कहीं सिर उठाए ।