भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्वागत नए वर्ष का / अनुराग अन्वेषी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुराग अन्वेषी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> साथियो, शुभक…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:13, 19 मई 2011 के समय का अवतरण
साथियो,
शुभकामनाओं से पहले
एक सवाल
तमाम कौशल के बाद भी
कब तक होते रहोगे हलाल ?
छोड़ो यह मलाल
कि जो बजाते रहे
सालों भर गाल
उनके हाथ में क्यों है
रेशमी रुमाल ?
हाँ साथियो,
सच्चे मन से जलाओ मशाल
जिसकी रोशनी बयाँ कर सके
तुम्हारा हाल
तभी तुम बन सकोगे मिसाल
देखो, दहलीज पर खड़ा है
उम्मीदों का नया साल ।