"पेड़ों के मुहाने पर / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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20:09, 20 मई 2011 के समय का अवतरण
आओ,
हम पेड़ों के मुहाने पर
खड़े होकर देखें
कि घटनाएँ क्या हैं -
आँखों की बज़ाय हवा के रुख से देखें
कि जिन्हें हम साँसें कहते हैं
वे क्या हैं ।
क्यों न तने से
टहनियों से पूछा जाए
कि जिसे हम जन्म कहते हैं
वह क्या है
क्योंकि अभी-अभी उन पर
कोंपलों ने साँस ली है ।
जड़ों से, आओ, पूछ लें
कि मृत्यु किसे कहा जाए
क्योंकि अभी-अभी
ऊपर की फुनगी से टूटकर गिरा
सूखा पीला पत्ता
बिल्कुल उनके पास पड़ा है ।
ज़िन्दगी के तमाम प्रश्न
और उनका उत्तर देने की हमारी कोशिश
इन पेड़ों के सहारे छोड़ दी जाए
तो कैसा रहे |
हवा के झोंकों को अगर हम सौंप दें
अपने सारे प्रश्न
तो क्या उत्तर आसान न हो जाएँगे
और वे उत्तर
क्या वैसे ही अधूरे होंगे
जैसे अक्सर हमारे रहे हैं ।
आओ,
पानी से पूछ देखें
वह कहाँ जाता है ।
उसकी यात्रा पर्वत से सागर तक है
या सागर से पर्वत तक
यह जानने के लिए
साथ-साथ चलकर देखें
वह कहाँ जाता है
या हम कहाँ जाएँगे ।
घटनाओं के क्रम में बाँधकर
साँसों को गिनना
हमारी अपनी मज़बूरी हो सकती है -
इसके लिए घटनाएँ दोषी नहीं हैं
क्योंकि उन्हें पेड़ों ने
हवा ने
जल ने भी जिया है
बिना उनसे बँधे ।