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"सठिया गया है देश / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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सठिया गया है देश चलो जश्न मनायें।।
 
सठिया गया है देश चलो जश्न मनायें।।

01:24, 21 मई 2011 का अवतरण

गाँधी की नये फ्रेम में तस्वीर सजायें,
सठिया गया है देश चलो जश्न मनायें।।

हमने भी गिरेबाँ के बटन खोल दिये हैं
थी शर्म, कबाड़ी ने रद्दी में खरीदी है
बीड़ी जला रहे हैं अपने जिगर से यारों
ये पूँछ खुदा ने जो सीधी ही नहीं दी है
हम अपनी जवानी में वो आग लगाते हैं
कुत्तों को, सियारों को जो राह दिखाते हैं

मौसम है उत्सव का, लेकर मशाल आओ
हम पर जो उठ रहे हैं, वो प्रश्न जलायें।
सठिया गया है देश, चलो जश्न मनायें।।

आज़ाद का मतलब, सड़कों पे पिघल जाओ
आज़ाद का मतलब है, बस - रेल जलाओ
आज़ाद का मतलब है, एक चक्रवात हो लो
आज़ाद का मतलब है पश्चिम की बात बोलो
सब रॉक-रोल हो कर चरसो-अफीम में गुम
हो कर कलर आये, फिर से सलीम में गुम

आज़ाद ख्याली हैं, दिल फेंक मवाली हैं
सपने न हमसे देखो, उम्मीद भाड़ जाये।
सठिया गया है देश, चलो जश्न मनायें।।

पूछा था जवानी ने, हमसे सवाल क्यों है
बुड्ढे जो तख्तो-ताज पे उनको तो घेरिये
बच्चे कल की आशा, उनकी बदलो भाषा
"मुट्ठी में क्या है पूछें", सर हाँथ फेरिये
टैटू भी गुदाना है, बालों को रंगाना है
कानों में नयी बाली, हम नहीं हैं खाली

मत बजाओ थाली, बच्चों बजाओ ताली
सुननी नहीं हो गाली तो राय न लायें।
सठिया गया है देश, चलो जश्न मनायें॥

ले कर कलम खड़ा था, मैं भूमि में गड़ा था
हँसने लगा वो पागल, जो पास ही खड़ा था
बोला कि अपने घर को, घर का चराग फूँके
वो आईने के अक्स पर, हर शख्स आज थूके
भटके हुए जहाज को आजाद नहीं कहते
लश्कर के ठिकानों को आबाद नहीं कहते

तुम अपनी कलम घिस्सो, दीपक ही जलाओ
वो गीत लिखो जिसको, बहरों को सुनायें
सठिया गया है देश चलो, जश्न मनायें॥

9.08.2007