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"ज़रा सुनो तो / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

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ज़रा सुनो तो
 
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घर-घर में अब गीत हमारे
 
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं!
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यहाँ चिता पर हम लेटे
 
यहाँ चिता पर हम लेटे
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पार मृत्यु के
 
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हम जीवन की नई पहेली
 
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं!
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मंत्र रचे थे
 
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उन्हीं अनूठे
 
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मंत्रों से सब नए सूर्य को
 
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं!
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अंतिम गीत हमारा यह
 
अंतिम गीत हमारा यह
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काला द्वीप पर
 
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नए-नए सुर-ताल हमें अब
 
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं!
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सूझ रहे हैं !
 
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02:08, 22 मई 2011 का अवतरण

ज़रा सुनो तो
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं !

यहाँ चिता पर हम लेटे
हैं धुआँ हो रहे
और देह के कष्ट हमारे
सभी खो रहे

पार मृत्यु के
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं !

मंत्र रचे थे
हमने धरती के सुहाग के
जो साँसों में दहती हर पल
उसी आग के

उन्हीं अनूठे
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं !

अंतिम गीत हमारा यह
रह गया अधूरा
हाँ, कल लौटेंगे हम
इसको करने पूरा

काला द्वीप पर
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं !