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"हँसा खूब खलनायक / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

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22:14, 22 मई 2011 के समय का अवतरण

परदा उठा
मंच पर आए पहले कई विदूषक

उन सबने भोली परजा को
काफी देर हँसाया
एक टाँग की नटिनी आई
उसने दीप जलाया

आए काने शाह
तब कहीं शुरू हुआ था नाटक

नायक बड़ी देर तक खाँसा
क्या कहना है - भूला
गिरी नायिका धम से नीचे
कटा रेशमी झूला

देख दुर्दशा
उन दोनों की हँसा खूब खलनायक

फिर आया जंगल का राजा
जिसने जाल बिछाया
घिरा मंच पर है तब से ही
उसका काला साया

रहा अधूरा
नाटक क्यों -चल रही बहस है अब तक