भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुनो साधो / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / क…)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:45, 22 मई 2011 के समय का अवतरण

सुनो साधो !
इस शिवाले में
जल रहा अब भी दिया है

उधर बैठा
राख में जोगी-जती है
इधर कुलदेवी हमारी
जागती है

अमृत सिरजा
देवता ने कल
हाँ, हलाहल भी पिया है

इधर पावन नदी
बड़-पीपल उधर हैं
आँख में ज़िंदा हमारी
भोर-संझा-दोपहर हैं

संग हमने
इन सभी के
उम्र का हर पल जिया है

उधर पर्वत के सिरे पर
घिर रहीं ऊदी घटाएँ
मेघ की बारादरी में
फिर रहीं भीगी हवाएँ

रामगिरी से
यक्ष है लौटा
हँस रही उसकी प्रिया है