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"हुआ अचरज महानगरी में / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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08:30, 24 मई 2011 के समय का अवतरण
हुआ अचरज
एक बच्चे ने हमें आवाज़ दी कल
महानगरी में
खड़ा छज्जे पर
हर किसी को दे रहा था
वह गुहारें
लगा हमको
तपे रेगिस्तान में
जैसे पड़ीं ठंडी फुहारें
और पहली बार
आया था हमारी आँख में जल
महानगरी में
हँसा बच्चा
फूल सारे खिल गए थे
सामने के पेड़ पर
कोई सपना गुनगुनाया
कहीं भीतर
राग आदिम छेड़कर
नया अनुभव
किसी बच्चे ने कहा था हमें 'अंकल'
महानगरी में
रहा पल भर सिर्फ़ जादू
दूसरे पल
हुआ बच्चा अज़नबी था
'सभी अपने'
गए-युग का मंत्र है यह
नए युग का वह नबी है
लौट आए
वही पहचाने हुए शोरगुल-हलचल
महानगरी में