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"वानप्रस्थी ये हवाएँ / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

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सुनो, साधो!
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इस नगर में सिर्फ़ हैं अंधी गुफ़ाएँ
 
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वक्त है गदहा-पचीसी
 
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जल रही है झील- झुलसी हैं दिशाएँ
 
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क्यों अपाहिज हो रही हैं ये हवाएँ
 
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09:36, 24 मई 2011 के समय का अवतरण

सुनो, साधो !
वानप्रस्थी ये हवाएँ- कहाँ जाएँ
वन नहीं हैं !

दूर तक सड़कें-इमारत
शोर है बस
धुएँ के बादल घिरे
हर ओर नीरस

सुनो, साधो !
इस नगर में सिर्फ़ हैं अंधी गुफ़ाएँ
वन नहीं हैं !

एक कोने में खड़ी हैं
ये ठगी-सी
बावरे दिन
वक्त है गदहा-पचीसी

सुनो साधो !
जल रही है झील- झुलसी हैं दिशाएँ
वन नहीं हैं !

सोचती ये
कहाँ नंदन-वन पुराने
उत्सवी आकाश
चिड़ियों के ठिकाने

सुनो, साधो !
क्यों अपाहिज हो रही हैं ये हवाएँ
वन नहीं हैं !