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"लोग भरी दुपहर में / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

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09:55, 24 मई 2011 के समय का अवतरण

कैसी यह बस्ती है
लोग भरी-दुपहर में लेटे हैं

घर-बाहर
सन्नाटे साँय-साँय करते हैं
चौकन्नी आहट को
गली-गली धरते हैं

अपनी घबराहट को
सपनों की छाँव में समेटे हैं

भूखा वेताल एक
सड़कों पर हाँफ रहा है
अपनी परछाईं से घिरा-हुआ
बूढ़ा वट काँप रहा है

गुंबज के गलियारे
पथराई धूप को लपेटे हैं

बच्चे इस बस्ती के
अँधियारे माँग रहे हैं
खुली हुई खिड़की पर
परदे वे टाँग रहे हैं

कोस रहे हैं बूढ़े बाप को
कैसे ये बेटे हैं