भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पते ये हैं नहीं / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / क…)
(कोई अंतर नहीं)

10:00, 24 मई 2011 का अवतरण

अजनबी है
यह शहर या वह शहर - सारे शहर

पत्थरों के हैं बने
महसूसते ये कुछ नहीं
धूप-आँगन-पेड़-पौधों के
पते हैं ये नहीं

बंद कमरों में
गुज़रती है शहर की दोपहर

हवा नकली
औ' मशीनी साँस के हैं काफ़िले
गुंबदों में सिर्फ़
चाँदी के झरोखे ही मिले

बँट रहा है
वहीँ से हर गाँव में मीठा ज़हर

गाँव-घर-चौखट
सभी कुछ लीलते ये
आदमी की खाल तक को
छीलते ये

कुछ दिनों में
साँस को कर डालते हैं खण्डहर