भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ये कौन लोग हैं / राकेश प्रियदर्शी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश प्रियदर्शी |संग्रह=इच्छाओं की पृथ्वी के …)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
 
लिख रहा हूं मैं भी कविता,
 
लिख रहा हूं मैं भी कविता,
 
 
वे हैं आश्चर्यचकित और मन ही मन
 
वे हैं आश्चर्यचकित और मन ही मन
 
 
क्रोधित
 
क्रोधित
 
  
 
कहे जाने पर मुझे कवि, उन्हें एतराज है,
 
कहे जाने पर मुझे कवि, उन्हें एतराज है,
 
 
‘भाषा का ज्ञान मुझे नहीं है’ वे ऐसा कहते हैं,
 
‘भाषा का ज्ञान मुझे नहीं है’ वे ऐसा कहते हैं,
 
 
उन्हें अच्छी नहीं लगती मेरी कविताएं,
 
उन्हें अच्छी नहीं लगती मेरी कविताएं,
 
 
उनके मिजाज के अनुकूल नहीं होती
 
उनके मिजाज के अनुकूल नहीं होती
 
 
मेरी कविताएं,
 
मेरी कविताएं,
 
 
मेरी कविताओं का शब्द-शिल्प और
 
मेरी कविताओं का शब्द-शिल्प और
 
 
सौन्दर्य नहीं भाता उन्हें
 
सौन्दर्य नहीं भाता उन्हें
 
  
 
मेरी कविताओं में किसी का प्रशस्ति
 
मेरी कविताओं में किसी का प्रशस्ति
 
 
गान नहीं होता,
 
गान नहीं होता,
 
 
आग उगलती है मेरी कविताएं,
 
आग उगलती है मेरी कविताएं,
 
 
शोषण, जातिवाद और सम्प्रदायवाद
 
शोषण, जातिवाद और सम्प्रदायवाद
 
 
के विरुद्ध आगाज होती हैं मेरी कविताएं
 
के विरुद्ध आगाज होती हैं मेरी कविताएं
 
  
 
चिढ़ है उन्हें मेरी कविताओं से,
 
चिढ़ है उन्हें मेरी कविताओं से,
 
 
ये कौन / कैसे लोग हैं और क्यों चिढ़ रहे हैं?</poem>
 
ये कौन / कैसे लोग हैं और क्यों चिढ़ रहे हैं?</poem>

20:12, 24 मई 2011 के समय का अवतरण


लिख रहा हूं मैं भी कविता,
वे हैं आश्चर्यचकित और मन ही मन
क्रोधित

कहे जाने पर मुझे कवि, उन्हें एतराज है,
‘भाषा का ज्ञान मुझे नहीं है’ वे ऐसा कहते हैं,
उन्हें अच्छी नहीं लगती मेरी कविताएं,
उनके मिजाज के अनुकूल नहीं होती
मेरी कविताएं,
मेरी कविताओं का शब्द-शिल्प और
सौन्दर्य नहीं भाता उन्हें

मेरी कविताओं में किसी का प्रशस्ति
गान नहीं होता,
आग उगलती है मेरी कविताएं,
शोषण, जातिवाद और सम्प्रदायवाद
के विरुद्ध आगाज होती हैं मेरी कविताएं

चिढ़ है उन्हें मेरी कविताओं से,
ये कौन / कैसे लोग हैं और क्यों चिढ़ रहे हैं?